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Devendra Kumar Sharma

जीवन दान


वृंदावन आश्रम में महाराज जी के अनन्य भक्त एवं प्रसिद्ध समाज सेवी श्री राधे कृष्ण पाठक जी के साथ महाराज जी की चर्चा करते समय महाराज जी के कई अनुभव साझा किये उनमें से एक में आप सबके साथ साझा करना चाहता हूँ।
आपके पिता श्री बनवारी लाल पाठक जी भी महाराज जी के अनन्य भक्त एवं प्रमुख समाजसेवी थे । बात लगभग सन १९७० के आसपास की है । गरमियों में दोपहर के समय आपके पिताजी को गम्भीर दिल का दौरा पड़ा आनन फ़ानन में डाक्टर का इंतज़ाम किया गया परंतु अपेक्षित सुधार नहीं नज़र आ रहा था । आपको उस समय कुछ न सूझा आप अपनी साइकल उठा कर वृंदावन आश्रम की तरफ़ चल दिए । सौभाग्य से महाराज जी आश्रम में ही थे ओर अपनी कुटिया में विश्राम कर रहे थे। आपने बाहर से कुटिया का दरवाज़ा खटखटाकर महाराज जी को पुकारा । अंदर से सिंह की गर्जना के समान आवाज़ आयी , " कौन है। " आप बोले महाराज जी पिताजी की तबियत बहुत ख़राब है । महाराज जी बोले , " बनवारी की , हम अभी चलते है । " महाराज जी तैयार हो तुरंत बाहर आ गये ओर बोले गाड़ी ला । परंतु उस दिन गाड़ी सर्विस होने वर्क शाप गयी हुई थी। महाराज जी आपके कंधे पर हाथ रख कर पैदल पैदल ही चल दिए । बाहर आने पर भी कोई साधन न मिला । काफ़ी दूर पैदल चलने के पश्चात अटल्ला चुंगी पर रिक्शा मिला जिससे आप पाठक जी के घर पहुँचे । उपर की मंज़िल जहाँ पर श्री बनवाती लाल जी लेटे हुए थे आप पहुँच गये। उस समय तक शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सज्ञ श्री के गोपाल इ .सी .जी .निकाल रहे थे जिसके अनुसार पाठक जी की तबियत गंभीर थी । महाराज जी ने अपना हाथ पाठक जी की छाती पर कस कर रख दिया ओर कुछ समय तक इसी प्रकार बैठे रहे । इसी दौरान आप ने डाक्टर से मशीन की जानकारी ली ओर बोले इस मशीन से उपर हम हैं ओर पुनः डाक्टर को आज्ञा दी कि दोबारा इ .सी .जी .करे डाक्टर आश्चर्य चकित रह गया इस बार इ . सी . जी . बिलकुल सही था। महाराज जी कुछ समय बैठने के पश्चात बोले , " बनवारी तू अब बिलकुल ठीक है ओर तू अभी पैंतीस साल ओर जीवित रहेगा । " श्री पाठक जी बताते है कि उनके पिताजी ठीक पैंतीस साल ओर ज़िंदा रहे ।


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