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मनुष्य के दुख तथा उसका निदान

Philosophy of Yoga

मनुष्य के समस्त दुखों के निदान का राजपथ- योग

हम सभी इस बात से सहमत होंगे कि हमारे जीवन में अनेक प्रकार के दुख आते हैं। यद्यपि यह कहा जाता है कि सुख- दुख इस संसार का स्वभाव है। किन्तु, यदि गहराई से देखा जाए तो यह संसार केवल दुखमय है। खुजली को खुजलाने में जो आनंद आता है वही यहां का सुख है। भले थोड़ी देर तक खुजलाते रहने से घाव बन जाता है और यह घाव केवल और केवल दुख ही देता है। भूलवश खुजलाने वाली अवधि के सुख को हम वास्तविक सुख मान लेते हैं जबकि वह क्षणिक सुख हमारे अनंत दुख का कारण बन जाता है।
आइए समझते हैं कि दुख क्या है? इस संसार के समस्त प्राणियों की कुछ अपनी-अपनी इच्छायें होती हैं उन इच्छाओं की जब पूर्ति हो जाती है तो लोभ उत्पन्न होता है। यह लोभ हममें एक और नई इच्छा पैदा करता है जिसका कोई अंत ही नहीं होता है। दूसरी ओर जब इच्छायें नहीं पूरी होती हैं तो क्रोध उत्पन्न होता है जो अंततः हमारी बुद्धि का ही नाश कर देता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारी इच्छा की पूर्ति हो जाने तथा उनकी पूर्ति न हो पाने- दोनों ही स्थितियों को दुख कहते हैं। रोग, बुढ़ापा, मृत्यु, प्रिय का संयोग,अप्रिय का वियोग तथा अपनी इच्छानुसार चीजों का न हो पाना आदि स्थिति परिस्थिति को हम दुख कहते हैं।
समस्त भारतीय दर्शन( चार्वाक को छोड़कर) मनुष्य के दुख का मूल कारण अविद्या या अज्ञानता को मानते हैं। इस संसार में दो ही मूल तत्व- जड़ तथा चेतन हैं। जड़ तत्व के अंतर्गत चार तत्व मिट्टी,पानी, अग्नि तथा वायु हैं। यद्यपि ये तत्व अपने सूक्ष्म रुप में नित्य हैं किन्तु इन तत्वों के परस्पर संयोग से बनी चीजें अनित्य हैं। इस दृश्य संसार की सम्पूर्ण चीजें अनित्य हैं। यह इस संसार का शाश्वत नियम है जिसे ऋत या प्रकृति का नियम कहते हैं। इस नियम में कोई परिवर्तन संभव ही नहीं है। यहां कुछ नित्य है ही नहीं किन्तु हम अज्ञानता वश सब कुछ को नित्य और शाश्वत बनाये रखना चाहते हैं। हम मृत्यु नहीं चाहते, हम अपने सभी संबंधों को अमर‌ देखना चाहते हैं, हम सदैव युवा बने रहना चाहते हैं। यह होना संभव ही नहीं है। प्रकृति किसी के लिए भी अपना नियम नहीं बदलती है। प्रकृति और मनुष्य के बीच इसी जद्दोजहद को दुख कहते हैं।
योग एक ऐसी विधा है जो मनुष्य को जड़ और चेतन के मूल स्वरुप का ज्ञान कराती है और ऐसी विशिष्ट विधियां बताती हैं जिसके अभ्यास से‌ व्यक्ति अपने स्वरुप में स्थित हो जाता है जो उसके सम्पूर्ण दुखों का सदैव के लिए निदान कर देती है।

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