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योग विधा में मंत्र की भूमिका

Philosophy of Yoga

योग विधा में मंत्र की भूमिका-
मंत्र शब्द मन तथा त्र के संयोग से निर्मित है। मन शब्द से ही मनुष्य या मानव शब्द की उत्पत्ति हुई है- 'मननात मनुष्य:' मनन करने की शक्ति के कारण ही हम मनुष्य हैं। मन शब्द बहुत व्यापक है किन्तु इसका सरल अर्थ है इन्द्रियों का विषयों से सम्पर्क होने पर अन्त:करण पर राग, द्वेष के पड़े हुए संस्कारों के समूह को ही मन कहते हैं। 'त्र' का अर्थ त्राण या छुटकारा होता है। इस प्रकार मंत्र शब्द का अर्थ हुआ मन से छुटकारा या मुक्ति प्राप्त करने का उपाय।
मन से मुक्ति प्राप्त करने की विधा को योग कहते हैं। इस प्रकार मंत्र उपाय, सीढ़ी या साधन है तथा योग साध्य है।
योग की स्थिति में पहुंचने के लिए अनेकों उपाय हैं जिसमें मंत्र भी एक उपाय है। मन से मुक्ति प्राप्त करने वाला ही तो असली बादशाह होता है। इस प्रकार मंत्र बहुत महत्वपूर्ण शक्ति होते हैं। मन के नियमन और नियंत्रण में इनकी महत्ता निर्विवाद है।
किन्तु, जब लोग मंत्र के द्वारा संसार की चीजों को नियंत्रित करने की बात करते हैं- तब यह मंत्र के विषय में अतिशयोक्ति, अतिरंजन तथा मिथ्या कथन होता है। जब कोई वस्तु महत्वपूर्ण होती है तब लोग उसे श्रद्धा की दृष्टि से देखने लगते हैं।इस क्रम में उसकी व्याख्या बढ़ते-बढ़ते श्रद्धा कब अन्ध-श्रद्धा बन जाती है इसका कोई अंदाजा ही नहीं रह जाता है। यही चीज मंत्र के संबंध में हुई है। आज स्थिति यह है कि मन से मुक्ति के लिए मंत्र का उपयोग नहीं होता। आज मंत्र का जप धन, स्त्री, पुत्र - पुत्री प्राप्त करने, शत्रु का नाश करने, मरे हुए को जीवित करने, भोजन का पाचन करने, किसी का रोग ठीक करने,किसी मृतक व्यक्ति को आत्मा को बुला लेना, किसी अशुद्ध चीज को शुद्ध करना तथा अन्य अनेक चीजों के लिए होने लगा है। वैसे तो यह वैदिक समय से होता आया है किन्तु आज के इस वैज्ञानिक युग में भी इसका बोलबाला है। आज बाजार में आपको अनेक ऐसे लोग मिल जाएंगे जो आपको धन प्राप्त करने का मंत्र बताएंगे और स्वयं निर्धन हैं। क्या चीनी- चीनी जपने से मुंह मीठा हो जाता है? अगर मंत्र से शत्रु का नाश संभव है तो ऐसे महावीरों को चीन और पाकिस्तान के बार्डर पर अवश्य जाना चाहिए। हमारे कुछ तंत्र ग्रंथों में तो यहां तक कहा गया है कि अमुक मंत्र को जपते हुए मांस, मदिरा, मैथुन का सेवन करना मुक्ति या मोक्ष में सहायक होता है वहीं इनसे संबंधित मंत्रों का जप किए बिना इनका सेवन करना बंधन का कारण होता है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए मंत्र के उच्चारण के साथ बेटी,बहन,मां तथा बहू आदि के साथ मैथुन की वकालत अनेक तंत्र ग्रंथों ने की है।वहीं दूसरी तरफ बिना मंत्र उच्चारण किए इनसे मैथुन करना बंधन है। मंत्र जपते हुए मांस मदिरा का सेवन करना भी मोक्ष में हेतु है। अगर मंत्र जप से ही मांस मदिरा का सेवन मोक्ष दिला सकता है तो ये लोग मंत्र जपते हुए मल या विष्ठा खाना क्यों नहीं प्रारम्भ कर देते हैं?

Comments

  • Gurender
    Ji, I can understand your view point, your points are true.

    But Mantra upchaaran se dushman ka naash ho skta hai, har ek mantra jo ki ek devta se juda hota hai, apko man ki ek quality gain krne mein madad krta hai, using which, aap bohot kuch kar skte hai, par ha, hame karamo ke bandan ko nahi bhulna chahiye.

    aaj ke logo mein agyaan hai, blind beliefs hai, ignorance hai par ye sab parmaan nahi hai ki mantra se kya kya nahi ho skta, it is huge science in itself.

    Aur ha, Tantra ke regarding...  more